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अग्निपथ योजना: गोरखा भर्ती पर भारतीय सेना प्रमुख मनोज पांडे से किन सवालों के जवाब चाहता है नेपाल?

भारतीय सेना के प्रमुख जनरल मनोज पांडे रविवार से पांच दिनों के आधिकारिक दौरे पर नेपाल में रहेंगे

विशेषज्ञों का कहना है कि दोनों सेनाओं के बीच पारंपरिक मैत्रीपूर्ण संबंधों को मज़बूती देने के लिए काठमांडू आ रहे भारतीय सेना प्रमुख मनोज पांडे से भारतीय सेना में गोरखा भर्ती अभियान को लेकर मौजूदा भ्रम को स्पष्ट करने का नेपाल को मौका मिलेगा.

जनरल पांडे, नेपाल सेना के प्रमुख प्रभु राम शर्मा के निमंत्रण पर नेपाल पहुंच रहे हैं.

इस यात्रा के दौरान वह नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी और प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा सहित कई प्रमुख लोगों से मिलेंगे.

वह नेपाली सेना की मानद जनरल रैंक का सम्मान भी ग्रहण करेंगे. लेकिन सबकी नज़रें गोरखा भर्ती अभियान को लेकर मौजूदा भ्रम की स्थिति को दूर करने पर टिकी हैं.

भारत सरकार द्वारा लागू की गई अग्निपथ योजना को लेकर कुछ चिंताओं के कारण नेपाल ने क़रीब डेढ़ सप्ताह पहले होने वाली बुटावल और धारन में गोरखा सैनिकों की भर्ती को स्थगित कर दिया था.

सेवानिवृत्त वरिष्ठ भारतीय सैन्य अधिकारी जनरल अशोक के मेहता ने बीबीसी नेपाली सेवा को बताया, “भर्ती पर गतिरोध की स्थिति एक और उदाहरण है, जिससे समझा जा सकता है कि भारत, नेपाल को गंभीरता से नहीं लेता और अपनी नीतियां बिना उसके सलाह-मशविरे से बनाता है.”

गोरखा भर्ती पर गतिरोध दूर होग

कोरोना वायरस

नेपाल के दो प्रधानमंत्रियों के विदेश मामलों के सलाहकार रहे पूर्व राजनयिक दिनेश भट्टाराई का कहना है कि नेपाल को भारतीय सेना प्रमुख की यात्रा के दौरान, गोरखा भर्ती अभियान को लेकर अपने सवालों के जवाब तलाशने चाहिए.

डॉ. भट्टाराई ने कहा, “सबसे पहले तो हमें नियुक्ति को लेकर स्पष्टता चाहिए. अग्निपथ योजना के प्रावधान, गोरखा सैनिकों की नियुक्ति को लेकर नेपाल, ब्रिटेन और भारत के बीच बने त्रिपक्षीय समझौते का उल्लंघन करते हैं. हमें इस पर स्पष्टता लेनी होगी और उसके बाद ही हम किसी नतीजे तक पहुंच सकते हैं.”

उन्होंने यह भी कहा कि अग्निपथ योजना के प्रावधानों के मुताबिक, अभी नियुक्त हुए सैनिकों में तीन चौथाई को तीन साल बाद सेवानिवृत्त करने की व्यवस्था, गंभीर सुरक्षा की चुनौती पैदा कर सकती है, इसलिए नेपाल में इस पर गंभीर चर्चा होनी चाहिए.

मुख्य विपक्षी दल सीपीएन-यूएमएल भी कह रहा है कि दस साल से आंतरिक सशस्त्र संघर्ष का सामना कर रहे नेपाल के लिए प्रशिक्षित और सेवानिवृत गोरखाओं की मौजूदगी अधिक चुनौतीपूर्ण होगी.

भट्टाराई कहते हैं, “अब भारत के सेनाध्यक्ष नेपाल आए हैं, तो हमें देखना चाहिए कि वे किस तरह से हमें विश्वास में लेने की कोशिश करते हैं. हम त्रिपक्षीय समझौते से कितना अलग हो रहे हैं, हमें इस बारे में भी स्पष्ट होना चाहिए. चूंकि नेपाल में नवंबर में चुनाव होना है, इसलिए मुझे लगता है कि इतनी महत्वपूर्ण नीति पर कोई भी फ़ैसला चुनाव के बाद भी होना चाहिए.”

हालाँकि भारतीय सेना के सेवानिवृत्त मेजर जनरल अशोक मेहता का तर्क है कि अग्निपथ योजना, नेपाली और भारतीय सैनिकों के बीच भेदभाव नहीं करती है और इसलिए त्रिपक्षीय संधि का उल्लंघन नहीं करती है. लेकिन उनका मानना ​​है कि नेपाल जैसे करीबी दोस्त से चर्चा किए बिना ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर एकतरफ़ा फै़सला लेना ग़लत है.

वर्तमान में भारतीय सेना की गोरखा ब्रिगेड में सात रेजिमेंट हैं. बताया जाता है कि नेशनल राइफल्स समेत 43 बटालियन में 40,000 से ज़्यादा गोरखा जवान हैं. हालांकि इनमें 60 फीसद नेपाल के हैं और 40 फीसद कुमाऊं और गढ़वाल जैसे इलाकों से चुने गए हैं.

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